आर्य समाज एवं दयानंद सरस्वती

       आर्य समाज हिन्दू धर्म का एक सुधारवादी आंदोलन था।इसके संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी थे। महर्षि दयानंद सरस्वती का बचपन का नाम मूलशंकर था।ये सत्य की तलाश में 15 वर्ष इधर उधर भटकते रहे तथा वेदांत की शिक्षा मथुरा के अंधे गुरु स्वामी विरजानंद से प्राप्त की। इन्होंने वेदों को सच्चा तथा सभी धर्मों से हटकर बताया। इन्होंने कहा कि वेद भगवान द्वारा प्रेरित हैं और सम्पूर्ण ज्ञान का श्रोत हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना 29 जनवरी 1875 में की थी तथा दूसरी शाखा की स्थापना 1877 ई० में की। इन्होंने वेदों की शिक्षा को सम्पूर्ण मानकर हिन्दू धर्म में कुरीतियों को अस्वीकार करके अपने अनुयायियों को वैदिक धर्म के पालन का निर्देश दिया।

      महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा माना तथा सर्वप्रथम स्वराज शब्द का प्रयोग किया। इन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके, स्वदेशी अपनाने पर जोर दिया।


  • महर्षि दयानंद सरस्वती जी को 'भारत का मार्टिन लूथर' कहा जाता है।
  • इन्होंने नारा दिया , 'भारत भारतीयों के लिए' एवं 'वेदों की ओर लोटो' 
  • इनका प्रशिद्ध कथन था:- ' अच्छा शासन स्वशासन का स्थानापन्न नहीं है।' 

आर्य समाज का योगदान

           आर्यसमाज ने हिन्दू रूढीवादिता, जातीगत कठोरता, अश्पृश्यता, मूर्ति पूजा, कर्मकांड, पुरोहितवाद, चमत्कार, बाल विवाह का विरोध किया। आर्य समाज ने अन्तर्जातीय विवाह एवं विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।

  •   आर्य समाज ने लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु 25 वर्ष एवं लड़कियों की न्यूनतम आयु 16 वर्ष निर्धारित की।

शिक्षा :- 

      शिक्षा के छेत्र में महर्षि दयानंद सरस्वती जी का मुख्य योगदान 'दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूलों' की स्थापना थी।इस प्रकार का प्रथम स्कूल सन् 1886 ई० में लाहौर में खोला गया। महर्षि दयानंद सरस्वती जी की मृत्यु के पश्चात आर्य समाज शिक्षा पद्यति को लेकर दो मतों में विभाजित हो गया।
जो इस प्रकार है:-


  1. गुरुकुल शाखा:-   गुरूकुल शाखा के प्रवर्तक पंडित लेखराम एवं स्वामी श्रृद्धानंद( महात्मा मुंशीराम) थे। इन्होंने सन् 1902 ई० में  कांगड़ी गुरुकुल(हरिद्वार) की स्थापना की जहाँ पर पारंपरिक पद्यति से शिक्षा दी जाती थी।
  2. कालेज शाखा :- इसके प्रवर्तक लाला हंसराज एवं लाला लाजपतराय थे।इस शाखा को डीएवी. शाखा कहा जाता था।इसके तहत आधुनिक पाश्चात्य पद्यति पर शिक्षा दी जाती थी।
              आर्य समाज ने वर्ष 1882 ई० मेंं ' गौ सुरक्षा संघ' की स्थापना की। इन्होंने हिन्दू धर्म में शुद्धि आंदोलन चलाया जिसका उद्येश्य किसी भय या दबाव से हिन्दू धर्म को छोड़ चुके लोगों को वापस हिन्दू धर्म में लाना था।

महर्षि दयानंद सरस्वती जी द्वारा रचयिता पुस्तकें

  1.  सत्यार्थप्रकाश:- यह पुस्तक हिन्दी भाषा में रचयित है इसे 'आर्य समाज का बाईबिल' कहा जाता है।
  2. वेद भाष्य भूमिका:- यह पुस्तक हिन्दी एवं संस्कृत दोनों भाषाओं में रचयित है।
  3. वेद भाष्य:- इस पुस्तक की रचना संस्कृत भाषा में की गई है।

आर्य समाज के 10 प्रमुख सिद्धांत

  (1) वेद ही ज्ञान के श्रोत हैं, अत: वेदों का अध्ययन आवश्यक है।
  (2) वेदों के आधार पर मंत्र-पाठ करना।
  (3) मूर्ति पूजा का खण्डन
  (4) तीर्थ यात्रा और अवतारवाद का विरोध।
  (5) कार्य, पुनर्जन्म एवं आत्मा के बारम्बार जन्म लेने पर विश्वास
  (6) एक ईश्वर में विश्वास जो निरंकारी है।
  (7) स्त्रियों की शिक्षा को प्रोत्साहन।
  (8) बाल विवाह एवं बहु विवाह का विरोध।
  (9) कुछ विशेष परिस्थितियों में विधवा विवाह का समर्थन।
  (10) संस्कृत एवं हिन्दी भाषा के प्रसार को प्रोत्साहन।






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