संदेश

सितंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राष्ट्रीय वन नीति एवं भारत वन रिपोर्ट, 2017

चित्र
       भारत में सर्वप्रथम 1894 ई० में वन नीति का निर्माण किया गया था। जिसमें सन् 1952 एवं 1988 में संशोधन किया गया है।वर्तमान वन नीति वनों की सुरक्षा, संरक्षण एवं विकास पर जोर देती है। ' राष्ट्रीय वन नीति 1988 ' के अनुसार भारत में 33% वन छेत्र की प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया है।नीति के अनुसार पर्वतीय छेत्रों में 60% छेत्र एवं मैदानी छेत्रों में 20% छेत्र को वनाच्छादित करने की आवश्यकता है। देश मे 2015 तक 33% वन छेत्र की प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया था परंतु अभी तक यह लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है। वर्तमान समय में देश का 24.39% भौगोलिक छेत्र ही वन आच्छादित है। इसी को ध्यान में रखते हुए हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा मसौदा वन नीति ,2018 जारी की गई है। इस नीति को पिछली नीतियों में रहने वाली कमियों एवं वर्तमान समय की पर्यावरण एवं आर्थिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। भारत में वनों की वर्तमान स्थिति           भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survay Of India -FSI) भारत में वनों की स्थिति का पता लगाने के लिए ' भारत की वन

भारत में वनों का वर्गीकरण

चित्र
  भारत एक विशाल छेत्रफल पर फैला हुआ भिन्न-भिन्न जलवायु एवं मृदाओं वाला देश है। इसलिए भारत में उष्णकटिबंधीय प्रकार से लेकर टुंड्रा प्रकार जैसी विविध वनस्पतियां पाई जाती है।जोकि पर्यावरण एवं आर्थिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण हैं। भारत में पायी जाने वाली वनस्पतियों को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नवत हैं:- 1. उष्णकटिबंधीय सदाहरित वन-  ऐसे वन 200 सेमी. से अधिक वर्षा वाले छेत्रों में पाए जाते हैं। इस प्राकार के वनों की लकड़ियां विषुवतिय वनों की तरह कठोर होती हैं एवं इनकी ऊंचाई 60 मीटर से अधिक होती है। इनमें मुख्यत: महोगनी, आबनूस, जारूल, बांस बेंत,सिनकोना एवं रबर जैसे बहुउपयोगी वृक्ष पाये जाते हैं। पश्चिमी घाट के ऊत्तरी छेत्रों में इन वनों को 'शोलास वन ' के नाम से जाना जाता है।भारत में यह वन पश्चिमी घाट, शिलांग का पठार, लक्ष्यद्वीप एवं अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं। अंडमान व निकोबार द्वीप समूह का 95% भाग इस प्रकार के वनों से ढका है। 2. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन- ये वन 100 से 200 सेमी. वर्षा वाले छेत्रों में पाए जाते हैं। सांगवान, सखुआ

सावंतवादी विद्रोह

सावंतवादी विद्रोह की शुरुआत एक मराठा सरदार फोण्ड सावंत के नेतृत्व में सन 1944 में हुई। इन्होंने कुछ सरदारों तथा देसाइयों की सहायता से कुछ किलों पर अधिकार कर लिया था। बाद में अंग्रेज सेना ने इन विद्रोहियों को मुठभेड़ के पश्चात परास्त कर दिया और सावंतों के अधिकार वाले किलों को कब्जे में लेकर सावंतों को किले से बाहर खदेड़ दिया। कुछ विद्रोही जान बचाकर गोवा भाग गये थे और बचे हुए विद्रोहियों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया।

भारत का नामकरण कैसे हुआ

भारत एक महान देश है।यहां की सभ्यता एवं संस्कृति उतनी ही पुरानी है जितना कि मानव की उत्पत्ति। भारत की विशालता के आधार पर इसे उपमहाद्वीप की संज्ञा दी गई है। भारत का प्राचीन नाम आर्यावर्त था। राजा भरत के नाम पर इसका नाम भारतवर्ष पड़ा। वैदिक आर्यों का निवास स्थान सिंधु घाटी में था। पर्शिया (वर्तमान ईरान) के लोगों ने सबसे पहले सिंधु घाटी से भारत में प्रवेश किया। वे लोग 'स' का उच्चारण 'ह' की तरह करते थे तथा वे सिंधु नदी को हिन्दू नदी कहते थे। इसी आधार पर उन्होने सर्वप्रथम भारत को हिंन्दुस्तान नाम दिया। ये लोग सिन्धु का बदला रुप हिन्दु यहां के निवासियों के लिए भी प्रयोग करते थे।जैन पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू और बौद्ध ग्रन्थों में भारत के लिए जम्बूद्वीप शब्द का प्रयोग किया गया है। भारत के लिए प्रयुक्त इंडिया शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के इण्डोस से हुआ है। यूनानियों ने सिंधु को इंडस तथा इस देश को इंडिया कहा। जेम्स अलेक्जेंडर ने अपने विवरण में हिन्दू का ह हटाकर देश को इंदू नाम से संबोधित किया था। बाद मे परिवर्तित होकर यह इंडिया हो गया।भारत के संविधान के अनुच्छेद-1 भारत