भारत में वनों का वर्गीकरण



 
भारत एक विशाल छेत्रफल पर फैला हुआ भिन्न-भिन्न जलवायु एवं मृदाओं वाला देश है। इसलिए भारत में उष्णकटिबंधीय प्रकार से लेकर टुंड्रा प्रकार जैसी विविध वनस्पतियां पाई जाती है।जोकि पर्यावरण एवं आर्थिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण हैं। भारत में पायी जाने वाली वनस्पतियों को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नवत हैं:-
1. उष्णकटिबंधीय सदाहरित वन-  ऐसे वन 200 सेमी. से अधिक वर्षा वाले छेत्रों में पाए जाते हैं। इस प्राकार के वनों की लकड़ियां विषुवतिय वनों की तरह कठोर होती हैं एवं इनकी ऊंचाई 60 मीटर से अधिक होती है। इनमें मुख्यत: महोगनी, आबनूस, जारूल, बांस बेंत,सिनकोना एवं रबर जैसे बहुउपयोगी वृक्ष पाये जाते हैं। पश्चिमी घाट के ऊत्तरी छेत्रों में इन वनों को 'शोलास वन ' के नाम से जाना जाता है।भारत में यह वन पश्चिमी घाट, शिलांग का पठार, लक्ष्यद्वीप एवं अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं। अंडमान व निकोबार द्वीप समूह का 95% भाग इस प्रकार के वनों से ढका है।

2. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन- ये वन 100 से 200 सेमी. वर्षा वाले छेत्रों में पाए जाते हैं। सांगवान, सखुआ, शीशम, आम, महुआ, बांस, खैर, त्रिफला व चंदन इस प्रजाति के महत्वपूर्ण वृक्ष हैं। ये वन पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों, तराई व भाबर के छेत्र में मुख्यत: पाए जाते हैं। इस प्रकार के वृक्षों से मुख्यत: फर्नीचर उद्योड जुड़ा हुआ है। सखुआ। लकड़ी का प्रयोग रेल के स्लीपर बनाने में भी किया जाता है।
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3. उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन- ये वनस्पयियां 70 सेमी. से 100 सेमी. वर्षा वाले छेत्रों में पाई जाती हैं। इस प्रकार के वनों की ऊंचाई अधिक नहीं होती तथा सीमान्त शुष्क छेत्रों में ये कटीले वन के रुप में पाये जाते हैं। इस प्रकार के वनों में अत्यधिक चराई की जाती है जो कि मृदा अपरदन का कार्य करती है।

4. कटीले वन एवं झाड़ियां- ये वन गुजरात, राजस्थान व पंजाब के 70 सेमी. से भी कम वर्षा वाले छेत्रों में पाए जाते हैं। मध्य प्रदेश के इंदोर से आंध्र प्रदेश के कुरनूल तक पठारी छेत्र में अर्द्धचन्द्राकार रूप में ये वनस्पतियां पाई जाती हैं। इन वनस्पतियों के मुख्य वृक्ष बबूल, कीकर, खैर, खजूर, नागफनी, कैक्टस आदि हैं।

5. पर्वतीय वन- ऊंचाई बढने के कारण मौसम में की प्रकार के परिवर्तन आते हैं तथा ऊंचाई वाले छेत्रों पर बारिश व 
बर्फबारी जैसी घटनाऐं अत्यधिक होती हैं।अत: यहां पर ऊंचाई के बढते क्रम में उष्णकटिबंधीय से लेकर अल्पाइन प्रकार की वनस्पतियां तक पायी जाती हैं। 1500 मीटर की ऊंचाई तक पर्णपाती वं पाये जाते हैं। 1500 मीटर से 3500मीटर की ऊंचाई के मध्य कोणधारी (शंकुधारी) वन पाए जाते हैं। इनकी लकड़ी मृदु होती है जो कि कागज उद्योग जैसे उद्योग के लिए काफी उपयोगी है। देवदार, सिल्वर फर, स्प्रूस, आदि छोटी व कोणधारी पत्तियों वाले वृक्ष पाये जाते हैं। 2800 मीटर से 4800 मीटर वाली ऊंचाई वाले छेत्रों में अल्पाइन वनस्पतियां भी पाई जाती हैं। यहां पर चिनार व अखरोट के वृक्ष तथा अल्पाइन चराहागाह पाए जाते हैं। जबकि अधिक ऊंचाई पर वनस्पतियां नहीं पाई जाती हैं।

6. ज्वारीय वन- ये वन ऐसे छेत्रों में पाए जाते हैं जहां पर नदियां समुद्र में मिलती हैं एवन दलदले तथा डेल्टा छेत्र का निर्माण करती हैं। इस प्रकार के वन गंगा-ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा जैसी नदियों के डेल्टाई छेत्रों में पाए जाते हैं। इनमें सुंदरघ, कैजुरिना, केवड़ा एवं बेदी जैसे वृक्ष पाए जाते हैं। इस प्रकार के वनों को 'मैग्राव वन' भी कहा जाता है। ये वन समुद्री कटाव को रोकते हैं एवं इनकी लकड़ियां सदैव जल में रहने पर भी गलती नहीं हैं। ये वन उच्च जैव विविधता युक्त सदाहरित वन का ही प्रकार हैं।




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