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जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खिलाफत या असहयोग आंदोलन क्या है ?

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                     प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात भारत में ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो गयीं कि भारतीयों को अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए विवश होना पड़ा। सन 1919 से 1922 तक दो महत्वपूर्ण आंदोलन चलाये गये। ये आंदोलन थे - खिलाफत आंदोलन एवं असहयोग आंदोलन। हालांकि खिलाफत आंदोलन भारतीय राजनीति से प्रत्यक्ष रुप से संबद्ध नहीं था परंतु इस आंदोलन ने हिन्दु- मुस्लिमों को भेदभाव मिटाकर एकजुट होकर आंदोलन करने के लिए प्रोत्साहित किया।   खिलाफत आंदोलन के उदय का कारण                                                  प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात तुर्की के प्रति ब्रिटिश शासन के रवैये से सम्पूर्ण विश्व के मुसलमान आक्रोशित हो उठे। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध जर्मनी एवं आस्ट्रिया का साथ दिया था। अत: ब्रिटेन ने तुर्की के प्रति कठोर रवैया अपनाया। तुर्की के साथ  'सेब्रीज की संधि'  करके तुर्की के आॅटोमन साम्राज्य का विभाजन कर दिया तथा खलीफा को पद से हटा दिया। अंग्रेजों के इस कदम से विश्व भर के मुसलमानों (सुन्नी) में तीव्र आक्रोश व्याप्त हो गया। विरोधस्

कैबिनेट मिशन, 1946 Cabinet Mission

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     ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने 20 फरवरी 1946 को घोषणा की कि जून 1946 तक ब्रिटिश सरकार भारत को स्वतंत्र कर देगी। इसलिए भारत में भावी राजनीतिक स्वरुप का खाका तैयार करने के लिए ब्रिटिश सरकार की घोषणा के बाद मार्च 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया। कैबिनेट मिशन के तीन स्थायी सदस्य थे- पैथरीक लारेंस (मिशन के अध्यक्ष), अलेक्जेंण्डर, स्टेफोर्ड क्रिप्स। मिशन की 16 मई की योजना           कैबिनेट मिशन ने भारत आकर यहां की राजनीतिक परिस्थितियों की जांच करने के पश्चात 16 मई 1946 को भारत के लिए परिसंघ का विचार प्रस्तुत किया। इसके तहत प्रांतों को A,B,C के तीन समूहों में विभाजित किया गया। मुस्लिम बाहुल सिंध-पंजाब और उत्तर-पश्चिम प्रांत एक समूह में रखा, बंगाल और असम दूसरे समूह में तथा बाकी प्रांत तीसरे समूह में रखने का प्रस्ताव था। तीनो समूह अलग-अलग बैठक कर संयुक्त संविधान की रचना को अधिकृत थे। दिल्ली स्थित केंन्द्रीय सरकार को रक्षा,मुद्रा और कूटनीति के रुप में राष्ट्रव्यापी मामलों को संभालने के लिए सशक्त किया जायेगा।  कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया      

भगौड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक,2018 (Fugitive Economic Offenders Bill,2018)

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  भारतीय संसद में, 19 जुलाई 2018 को लोकसभा तथा 25 जुलाई 2018 को राज्यसभा में भगौड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक,2018 पारित किया गया। अब यह विधेयक राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर के पश्चात अधिनियम बन जायेगा। इस अधिनियम के तहत देश की आर्थिक संस्थाओं से धन उधार लेकर विदेशों में भागने वाले लोगों पर शिकंजा कसा जा सकेगा। इस विधेयक के प्रभाव में आने के पश्चात भगौड़े आर्थिक अपराधी विदेशों में छिपकर भारत की कानूनी एवं न्यायिक प्रक्रिया से बच नहीं पायेंगे। साथ ही भारत सरकार के पास ऐसे अपराधियों की संपत्ती जब्त करने एवं उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का अधिकार होगा।     प्रमुख तथ्य:- यह विधेयक अप्रैल माह में राष्ट्रपति महोदय द्वारा जारी किये गये अध्यादेश का स्थान लेगा। इसके तहत 100 करोड़ या इससे अधिक राशि के आर्थिक अपराधियों पर शिकंजा कसा जा सकेगा। वर्तमान में लागू कानूनों के तहत अपराधी की संपत्ती जब्त नहीं की जा सकती परंन्तु भगौड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम,2018 लागू हो जाने पर अपराधी की संपत्ती भी जब्त की जा सकेगी। इस कानून के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) जांच एजेंसी की भूमिका निभायेगा। इस कानून

स्वराज पार्टी की स्थापना एवं योगदान

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स्वराज पार्टी के उदय का कारण                                       मार्च 1922 ई० में गांधी जी की गिरफ्तारी से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में बिखराव आने लगा तथा कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर पार्टी में प्रश्न उठने लगे। कुछ नेता गांधी जी के नेतृत्व पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने लगे ऐसी स्थिति में एक गुट जिसका नेतृत्व सी० आर० दास, मोती लाल नेहरु और हकीम अजमल खान के द्वारा किया जा रहा था, चाहता था कि कांग्रेस को विधान परिषद में प्रतिनिधित्व करके साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध करना चाहिए एवं सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न करनी चाहिए। स्वराजियों का तर्क था कि  यह युक्ति असहयोग का परित्याग नहीं अपितु उसे प्रभावी बनाने की रणनीति है।    पार्टी की स्थापना          1 जनवरी 1923 को स्वराज पार्टी की स्थापना हुई। पार्टी का अध्यक्ष सी० आर० दास एवं महासचिव  मोतीलाल नेहरु बने। पार्टी के अन्य प्रमुख सदस्य थे:- श्रीनिवास आयंगर, विट्ठलभाई पटेल एवं हकीम अजमल खान‌। भारत सरकार अधिनियम,1919 के तहत 1923 में परिषदों/कांउसिल के चुनाव आयोजित कराये जाने थे। स्वराज पार्टी के सदस्य परिषदों में पहुंचकर असहयोग की न

बुन्देला विद्रोह क्यों हुआ ?

 1835 ई० में अंग्रेजों ने उत्तर-पश्चिम प्रांत नामक एक नया प्रांत बनाया, जिसमें मराठों से छीने गये आधुनिक मध्यप्रदेश के दो जिले भी मिलाये गए-सागर एवं दमोह|इस प्रांत में 'बर्ड कमीशन' के प्रतिवेदन पर महलवारी बन्दोबस्त किया गया, जिसमें बीस वर्षों के लिए लगान का निर्धारण बढी हुई दर पर कर दिया गया। इससे यहां के जमींदार नाराज हो गये और उनसे जब लगान जबरदस्ती वसूल किया जाने लगा, तो सागर के दो जमींदारों जवाहर सिंह  एवं मधुकरशाह ने 1842 ई० में विद्रोह कर उत्पात मचाना शुरू कर दिया। 1843 ई० तक इस विद्रोह पर काबू पा लिया गया और लगान भी कम कर दिया गया।

रोलेट एक्ट एवं जलियांवाला बाग हत्याकांड

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रोलेट एक्ट             प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात भारतीयों द्वारा आजादी की मांग जोर पकड़ने लगी थी।जिसको दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में 10 दिसंबर 1917 को एक कमेटी गठित की जिसने जांच पड़ताल करने के बाद 15 अप्रैल 1918 को भारत मंत्री को अपनी रिपोर्ट पेश की यह रिपोर्ट, रोलेट समिति की रिपोर्ट कहलायी इस रिपोर्ट में भारतीयो द्वारा चलाए जाने वाले  स्वाधीनता संग्राम को भारतीय आतंकवाद का नाम दिया। भारतीयों की आवाज को दबाने के लिए इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर ' रोलेट एक्ट' पारित कर दिया गया। रोलेट एक्ट के तहत किसी भी भारतीय को शक के आधार पर गिरफ्तार करके दो वर्ष के लिए जेल में डाल दिया जाता था और वह व्यक्ति गिरफ्तारी के विरुद्ध अपील भी नहीं कर सकता था और न ही उसे शिकायतकर्ता का नाम जानने का अधिकार था।        वैयक्तिक स्वतंत्रता को सीमित किए जाने के विरोध में गांधी जी ने फरवरी 1919 में सत्याग्रह सभा की घोषणा की। 6 अप्रैल 1919 को रोलेट एक्ट के विरोध में संपूर्ण भारत में सत्याग्रह करने का निर्णय लिया गया। रोलेट सत्याग्रह भारत में गांधी जी