रोलेट एक्ट एवं जलियांवाला बाग हत्याकांड

रोलेट एक्ट

            प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात भारतीयों द्वारा आजादी की मांग जोर पकड़ने लगी थी।जिसको दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में 10 दिसंबर 1917 को एक कमेटी गठित की जिसने जांच पड़ताल करने के बाद 15 अप्रैल 1918 को भारत मंत्री को अपनी रिपोर्ट पेश की यह रिपोर्ट, रोलेट समिति की रिपोर्ट कहलायी इस रिपोर्ट में भारतीयो द्वारा चलाए जाने वाले  स्वाधीनता संग्राम को भारतीय आतंकवाद का नाम दिया। भारतीयों की आवाज को दबाने के लिए इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर 'रोलेट एक्ट' पारित कर दिया गया। रोलेट एक्ट के तहत किसी भी भारतीय को शक के आधार पर गिरफ्तार करके दो वर्ष के लिए जेल में डाल दिया जाता था और वह व्यक्ति गिरफ्तारी के विरुद्ध अपील भी नहीं कर सकता था और न ही उसे शिकायतकर्ता का नाम जानने का अधिकार था।
       वैयक्तिक स्वतंत्रता को सीमित किए जाने के विरोध में गांधी जी ने फरवरी 1919 में सत्याग्रह सभा की घोषणा की। 6 अप्रैल 1919 को रोलेट एक्ट के विरोध में संपूर्ण भारत में सत्याग्रह करने का निर्णय लिया गया।

  • रोलेट सत्याग्रह भारत में गांधी जी का प्रथम अखिल भारतीय स्तर का आंदोलन था।
  • स्वामी श्रृद्धानंद ने एक्ट के विरोध में लगान न देने का आंदोलन चलाने का सुझाव दिया।
  • अनेक स्थानों पर सत्याग्राहियों ने अहिसां का मार्ग त्यागकर हिंसा का मार्ग अपनाया, जिससे 18 अप्रैल 1919 को गांधी जी ने अपना सत्याग्रह समाप्त घोषित कर दिया क्योंकि उनके सत्याग्रह में हिंसा का कोई स्थान नहीं था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड


    पंजाब के दो स्थानीय नेता डा० सतपाल सिंह एवं सैफुद्दीन किचलू को रोलेट एक्ट के तहत गिरफ्तार करके बलात् पंजाब से बाहर भेज दिया गया। इन गिरफ्तारियों के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा हुए।इनमें अधिकांश लोग स्थानीय ग्रामीण थे , जो सरकार द्वारा शहर में लगाए गए प्रतिबंधों से बेखबर थे। जनरल माइकल डायर जो कि पंजाब के तात्कालिक उपराज्यपाल थे, ने इस सभा को सरकारी आदेश की अवहेलना समझा तथा सभा स्थल को सशस्त्र सैनिकों ने घेर लिया। ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर के आदेश पर निहत्थे लोगों पर तब तक गोलियां बरसायी गयीं जब तक कि सैनिको के पास गोलियां समाप्त नहीं हो गयीं। सभी निकास मार्गों पर सैनिक तैनात होने के कारण लोग बचकर भी नहीं भाग सके और इस हत्याकांड में हजारों निहत्थे लोग मारे गये‌।‌‍‌

  • रविन्द्र नाथ टैगोर ने विरोख स्वरूप 'नाइटहुड' की उपाधी त्याग दी एवं गांधी जी ने 'केसर ए हिन्द' ब्रिटिश सरकार को लौटा दिया।
  • शंकरराम नागर ने वायसराय की 'कार्य परिषद' से इस्तीफा दे दिया।
  • भारतीयो द्वारा इस बर्बर हत्याकांड की जांच की मांग पर अंग्रेजी सरकार ने विलियम हंटर की अध्यक्ष्ता में 'हंटर कमेटी' का गठन किया। कमेटी की रिपोर्ट में जनरल डायर को दोषमुक्त घोषित करते हुए 'ब्रिटिश साम्राज्य का शेर ' कहा गया।
  • कांग्रेस ने गांधी जी की अध्यक्षता में सात सदस्यीय जांच समिति का गठन किया।

नोट- इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल ने इस बर्बर कांड की तुलना ' जाॅन आॅफ आर्क' के जलाने की घटना से की तथा मांटेग्यू ने इसे ' निवारक हत्या' कहा।सी. एफ. एन्ड्रयूज ने इसे ' जानबूझकर की गयी क्रूर हत्या' कहा।

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