स्वराज पार्टी की स्थापना एवं योगदान
स्वराज पार्टी के उदय का कारण
मार्च 1922 ई० में गांधी जी की गिरफ्तारी से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में बिखराव आने लगा तथा कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर पार्टी में प्रश्न उठने लगे। कुछ नेता गांधी जी के नेतृत्व पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने लगे ऐसी स्थिति में एक गुट जिसका नेतृत्व सी० आर० दास, मोती लाल नेहरु और हकीम अजमल खान के द्वारा किया जा रहा था, चाहता था कि कांग्रेस को विधान परिषद में प्रतिनिधित्व करके साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध करना चाहिए एवं सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न करनी चाहिए। स्वराजियों का तर्क था कि यह युक्ति असहयोग का परित्याग नहीं अपितु उसे प्रभावी बनाने की रणनीति है।पार्टी की स्थापना
1 जनवरी 1923 को स्वराज पार्टी की स्थापना हुई। पार्टी का अध्यक्ष सी० आर० दास एवं महासचिव मोतीलाल नेहरु बने। पार्टी के अन्य प्रमुख सदस्य थे:- श्रीनिवास आयंगर, विट्ठलभाई पटेल एवं हकीम अजमल खान। भारत सरकार अधिनियम,1919 के तहत 1923 में परिषदों/कांउसिल के चुनाव आयोजित कराये जाने थे। स्वराज पार्टी के सदस्य परिषदों में पहुंचकर असहयोग की नीति को ओर ज्यादा प्रभावी बनाना चाहते थे।गांधी जी समेत अन्य प्रमुख नेता चुनाव में भागीदारी की नीति का विरोध करते थे। उन्हें अपरिवर्तनवादी कहा जाता था। परन्तु कांग्रेस पार्टी को फूट से बचाने के लिए गांधी जी ने स्वराज पार्टी के सदस्यों को चुनाव में हिस्सा लेने की बात मान ली। गांधी जी को स्वराजवादी नेताओं पर पूरा भरोसा था तथा उन्हें अत्यन्त मूल्यवान एवं सम्मानित नेता मानते थे। स्वराज पार्टी के नेताओं को स्वराजवादी या परिवर्तनवादी के नाम से जाना जाता था।
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