ईश्वर चंद्र विद्यासागर
बंगाल में जन्मे ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बंदोपाध्याय था।वे ऐसे उच्च नैतिक मूल्यों में विश्वास करते थे जो मानवता के लिए समर्पित तथा गरीबों के लिए उदार हों । ईश्वर चन्द्र विद्यासागर 1850 में संस्कृत कालेज के प्रधानाचार्य बने। उन्होंने संस्कृत पर ब्रहामणों के एकाधिकार को चुनौती देते हुए गैर-ब्राह्मणों को भी संस्कृत अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया तथा संस्कृत कालेज में आधुनिक दृष्टिकोण का प्रसार करने के लिए अंग्रेजी शिक्षा का प्रबंध किया। उन्होंने संस्कृत भाषा का बंगाल में प्रसार करने के लिए बांग्ला भाषा में वर्णमाला भी लिखी।
विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह, बाल विवाह के लिए शसक्त आंदोलन चलाया। उन्हीं के प्रयासों से सन् 1856 ई० में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग ने 'हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम,'XV', पारित किया।उन्होंने स्वयं भी एक विधवा के साथ विवाह किया तथा अपने इकलौते पुत्र का विवाह भी एक विधवा के साथ किया।
1840 एवं 1850 के दशक में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयासों से स्त्री शिक्षा के लिए शसक्त आंदोलन चलाये गये। सन् 1849 ई० में कलकत्ता में बेथुन स्कूल की स्थापना हुई जिसका सचिव विद्यासागर जी को बनाया गया। ये अन्य 35 विद्यालयों से भी जुड़े रहे जो बालिकाओं से संबद्ध थे। इस कारण इन्हें छात्रों के अभिभावकों का सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ा कई अभिभावकों का मानना था कि स्त्रियों को पाश्चात्य एवं उच्च शिक्षा देने से वे अपने पतियों को गुलाम बना लेंगी।
- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जी द्वारा 'सोमप्रकाश' नामक् पुस्तक का संपादन किया गया।
- इन्होंने 'बहुविवाह' नामक् एक पुस्तक लिखी।
- इन्होंने 'नील आंदोलन' का समर्थन भी किया।
- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की मृत्यु पर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा, 'यह आश्चर्य की बात है कि कैसे भगवान ने 4 मिलियन बंगालियों को बनाने की प्रक्रिया में एक मानव को बनाया'।
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