रामोसिस विद्रोह
रामोसी विद्रोह की शुरुआत पश्चिमी महाराष्ट्र के पूना में रामोसिस द्वारा की गई जोकि मराठा साम्राज्य के समय में पुलिस विभाग में कार्यरत थे परंतु ब्रिटिश शासन आ जाने के कारण इनकी सेवाएं समाप्त हो गयीं थीं। जिस कारण ये लोग बेरोजगार हो गए थे तथा अंग्रेजों ने इनकी जमीनों पर लगान की दर काफी बढा दी थी। ऐसे में सन 1822 ई० में अकाल पड़ने के कारण ये लोग भुखमरी की समस्या से जूझने लगे। फलतः रामोसिस ने 'चित्तूर सिंह' के नेतृत्व में सतारा के आसपास के छेत्रों को लूटा एवं वहां के किलों पर चढाई कर दी। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबा दिया परन्तु 1825 -26 ई० में फिर से अकाल पड़ने पर यह आँदोलन फिर से भड़क उठा और इस बार विद्रोह का नेतृत्व का जिम्मा 'उमाजी' ने संभाला । 1829 ई० तक यह आंदोलन तीव्र गति से चलता रहा फिर 1841 ई० तक यह विद्रोह पूर्णतया समाप्त हो गया।
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