सत्यशोधक समाज एवं ज्योतिबा फुले

 
ज्योतिबा फुले का जन्म सन् 24 सितंबर 1873 ई० को पूना के शूद्र माली जाति में हुआ था। उन्होंने सामाजिक न्याय एवं दलित उत्थान के अथक प्रयास किए। ज्योतिबाफुले जाति प्रथा के पूर्ण उन्मूलन एवं सामाजिक-आर्थिक समानता के पक्षधर थे। उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की तथा ब्राह्मण वादी संस्कृत समाज का विरोध किया। सत्यशोधक समाज का मुख्य उद्येश्य सामाजिक सेवा तथा स्त्रियों एवं निम्न जाति के लोगों के बीच शिक्षा का प्रसार करना था। उन्होंने ब्राह्मणों के प्रतीक चिन्ह 'राम' के विरोध में 'राजा बालि' को अपना प्रतीक चिन्ह बनाया। फूले के आंदोलनों के कारण समाज में दलितों का उत्थान हुआ तथा ब्राह्मणों का वर्चस्व समाप्त हो गया। उन्होंने ब्राह्मणों का वर्चस्व के कारण ही ' भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' का भी विरोध किया। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले की सहायता से पूना में एक बालिका विद्यालय की स्थापना की तथा उन्होंने महाराष्ट्र में विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए कार्यक्रम प्रारम्भ किया। फुले की मृत्यु के पश्चात सत्यशोधक समाज की कमान छत्रपति शाहू ने संभाली।

  • ज्योतिबा फुले द्वारा दैनिक ' दीनबंधु' का संंपादन किया गया, जिसके द्ववारा वे अपने विचार जनता तक पहुुंचाने का प्रयास करते थे।
  • इनके द्वारा रचित पुस्तकें:- गुलामगिरी, धर्म तृतीय रत्न, इशारा, लाइफ अॉफ शिवाजी एवं सेनकारयन्वा असुधा

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