भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-स्थापना एवं उद्येश्य
स्थापना
कर दिये गए थे परंतु इस कार्य को वास्तविक पटल पर लाने का कार्य ए.ओ. ह्यूम (एलन अॉक्टीवियन ह्यूम), ब्रिटिश सेना के एक सेवानिवृत्त अधिकारी के द्वारा किया गया।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को वायसराय लार्ड डफरिन के समय में हुई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, आनंद मोहन बोस एवं दादा भाई नौरोजी जैसे नेताओं ने काफी सहयोग किया। सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने सन् 1876 में इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की। इंडियन एसोसिएशन के तत्वावधान में सन् 1883 में ' भारतीय राष्ट्रीय कांफ्रेंस' का आयोजन हुआ। इसके दूसरे सम्मेलन का आयोजन सन् 1885 ई० में हुआ। सन् 1886 में 'भारतीय राष्ट्रीय कांफ्रेंस' का विलय ' भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' में कर दिया गया।
कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन पूना में प्रस्तावित किया गया परंतु पूना में प्लेग फैलाने के कारण स्थान परिवर्तन करके मुंबई के गोपालदास तेजपाल संस्कृत कालेज में अधिवेशन बुलाया गया। प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने की। इस अधिवेशन में 72 सदस्यों ने भाग लिया।
उद्येश्य
कांग्रेस की स्थापना के पीछे ब्रिटिश सरकार को ऐसा लगता था कि यदि असंतुष्ट भारतीयों को एक संगठन का निर्माण करके यदि उनकी मांगों पर विचार किया जाये तो भारतीयों एवं ब्रिटिश सरकार के मध्य संवाद स्थापित हो जायेगा जिससे 1857 जैसे किसी भी विद्रोह की स्थिति को पैदा होने से रोका जा सके। कुछ इतिहासकारों के द्वारा इसे 'सेफ्टी वाल्व' का सिद्धांत कहा गया। परंतु कांग्रेस की स्थापना के पीछे भारतीय राष्ट्रवादियों का उद्येश्य था कि जन सभाओं एवं परिषदों में प्रतिनिधित्व पाकर ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की समस्याओं से अवगत कराया जा सकेगा। भारतीय राष्ट्रवादियों को पूर्ण विश्वास था कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों की भलाई के लिए कार्य कर रही है यदि हम अपनी समस्याओं को ब्रिटिश शासन के समक्ष रखेंगे तो वे हमारी समस्याओं का समाधान अवश्य करेंगे। प्रारंभ में अंग्रेजों ने कांग्रेस के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाये रखा परंतु कांग्रेस के राष्ट्रवादी रुख को देखते हुए अंग्रेज आशंकित हो गए और कांग्रेस के जनाधार का उपहास उड़ाने लगे। लार्ड डफरिन ने कांग्रेस को 'सूक्ष्मतम अल्पसंख्यक' का दर्जा दिया। कांग्रेस की स्थापना के प्रमुख उद्येश्य एवं कार्यक्रम निम्नलिखित है:-
- लोकतांत्रिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन चलाना।
- भारतीय जनता को राजनीति के बारे में जानकारी देना तथा भारतीयों को राजनीति की शिक्षा देना।
- आंदोलन के लिए मुख्यालय स्थापित करना।
- देश के सभी नेताओं एवं राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लेकर आना।
- उपनिवेशवाद विरोधी विचारधारा को सम्पूर्ण देश में प्रोत्साहित करना।
- एक सामान्य आर्थिक तथा राजनैतिक कार्यक्रम हेतु देशवासियों को एकमत करना।
- जनता को जाति, धर्म एवं प्रांतीयता की भावना से ऊपर उठाकर राष्ट्रवादी भावना जागृत करना।
- भारतीय जनता को राष्ट्रवादी अनुभव को जागृत करना।
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