राजा राममोहन राय
ब्रिटिश साम्राज्य का भारत में उपनिवेश स्थापित हो जाने के बाद भारत में भी तर्कवाद, मानवतावाद और विज्ञानवाद की धारणाओं ने 'पुनर्जागरण' की प्रिक्रिया को आरम्भ किया। उन्हीं में एक प्रमुख नाम है राजा राममोहन राय का इन्होंने पुरानी मान्यताओं ओर अंधविश्वासों को त्याग कर नयी मान्यताओं को अपनाने पर बल दिया।
राजा राममोहन राय को 'आधुनिक पुरूष', 'पुनर्जागरण का मसीहा', 'आधुनिक भारत का निर्माता', 'भारतीय छितिज का सबसे चमकदार तारा' और 'भारतीय राष्ट्रवाद का पैगम्बर' के उपनाम से जाना जाता है। राजा राममोहन राय ईस्ट इंडिया कंपनी में कर संग्राहक के पद पर कार्यरत थे परन्तु उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास एवं कुरीतियों को देखकर अपनी नोकरी त्यागकर भारतीय समाज के उत्थान में जुट गए। उन्हें राजा की पदवी मुगल बादशाह अकबर द्वितीय के द्वारा प्रदान की गई।
3- गिफ्ट टू मोनोथीज्म:- पुस्तक में अनेकों ईश्वरों में विश्वास के विरोध में तथा एक ईश्वर की उपासना के पक्ष में प्रभावशाली तर्क किये गए हैं।
4- शबद कौमुदी:-1821 में बंगाली भाषा का यह प्रथम समाचार पत्र था जिसका सम्पादन एवं प्रबंधन किसी भारतीय द्वारा किया गया था।
5- मिरातुल अखबार:- 1823 में फारसी भाषा के इस साप्ताहिक समाचार पत्र पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा दिया था।
राजा राममोहन राय की अन्य रचनाएँ हैं:- बंगदूत, मनजारा-तुल-अद्ययन, द गार्डन टू पीस एण्ड हैपीनेस
• विभिन्न शिक्षण संस्थानों जिनकी स्थापना का श्रैय राजा राममोहन राय को जाता है। जैसे:- कलकत्ता यूनिटोरियल सोसायटी, वेदांता कालेज(1825),डेविड हेयर की मदद से हिन्दू कालेज, कलकत्ता1817 में स्थापित किया गया
राजा राममोहन राय को 'आधुनिक पुरूष', 'पुनर्जागरण का मसीहा', 'आधुनिक भारत का निर्माता', 'भारतीय छितिज का सबसे चमकदार तारा' और 'भारतीय राष्ट्रवाद का पैगम्बर' के उपनाम से जाना जाता है। राजा राममोहन राय ईस्ट इंडिया कंपनी में कर संग्राहक के पद पर कार्यरत थे परन्तु उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास एवं कुरीतियों को देखकर अपनी नोकरी त्यागकर भारतीय समाज के उत्थान में जुट गए। उन्हें राजा की पदवी मुगल बादशाह अकबर द्वितीय के द्वारा प्रदान की गई।
कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष
राजा राममोहन राय ने सभी धर्मों को एक ईश्वर का मूर्त रूप माना। उन्होंने प्राचीन वेदों का उदाहरण देते हुए एकैश्वरवाद के सिद्धांत को माना। एकैश्वरवाद के प्रचार के लिए उन्होंने सन् 1814 ई० में आत्मीय सभा का गठन किया तथा मूर्ति पूजा, जााति प्रथा की कठोरता, अर्थहीन रीति-रिवाजों तथा अन्य सामाजिक बुराइयों की भर्त्सना की। सन 1828 ई० में ब्रहम सभा की स्थापना की जो आगे चलकर ब्रह्मा समाज कहलायी। ब्रह्म सभा का उद्येश्य हिन्दू धर्म को उसकी बुराईयों से अलग करना तथा एकैश्वरवाद का प्रचार करना था। राजा राममोहन राय जी के ही प्रयासों द्वारा सती प्रथा जैसी कुरीति को समाप्त किया जा सका उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध आवाज सन 1819 में उठानी प्रारंभ कर दी थी ओर 1829 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैटिंक ने कानून बनाकर सति प्रथा की समाप्ति की बात घोषणा कर दीपत्रकारिता और शिक्षा
राजा राममोहन राय ने आधुनिक पश्चिमी शिक्षा का प्रचार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।विभिन्न मुद्दों पर जनता को शिक्षित करने के लिए बंगाली, फारसी, हिंदी और अंग्रेजी में पत्र-पत्रिकाओं को संपादित किया।
जिनमें कुछ रचनाएँ प्रमुख हैं:-
(1) तुहफत-अल-मुहवाहिदीन:- राजा राममोहन राय द्वारा रचित यह प्रथम पुस्तक है।
2- प्रीसेप्ट अॉफ जीसस:- पुस्तक में न्यू टेस्टामेंट(बाईबल) के नैतिक और दार्शनिक संदेशों को पृथक करने का प्रयास किया गया है।3- गिफ्ट टू मोनोथीज्म:- पुस्तक में अनेकों ईश्वरों में विश्वास के विरोध में तथा एक ईश्वर की उपासना के पक्ष में प्रभावशाली तर्क किये गए हैं।
4- शबद कौमुदी:-1821 में बंगाली भाषा का यह प्रथम समाचार पत्र था जिसका सम्पादन एवं प्रबंधन किसी भारतीय द्वारा किया गया था।
5- मिरातुल अखबार:- 1823 में फारसी भाषा के इस साप्ताहिक समाचार पत्र पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा दिया था।
राजा राममोहन राय की अन्य रचनाएँ हैं:- बंगदूत, मनजारा-तुल-अद्ययन, द गार्डन टू पीस एण्ड हैपीनेस
• विभिन्न शिक्षण संस्थानों जिनकी स्थापना का श्रैय राजा राममोहन राय को जाता है। जैसे:- कलकत्ता यूनिटोरियल सोसायटी, वेदांता कालेज(1825),डेविड हेयर की मदद से हिन्दू कालेज, कलकत्ता1817 में स्थापित किया गया
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