थियोसोफिकल सोसायटी
इस आंदोलन की शुरुआत दो पाश्चात्य बुद्धिजीवियों रुस की मैडम एच. पी. ब्लावैटस्की तथा कर्नल एच. एस. अल्काट ( यू.एस.ए.) के द्वारा की गयी जिसमें इनका सहयोग विलियम जज द्वारा किया गया। इन्होंने भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर 17 नवंबर 1875 को न्यूयॉर्क (यू.एस.ए.) में 'थियोसोफिकल सोसायटी' की शुरुआत की।सन् 1879 ई० में इन्होंने मुंबई में अपना कार्यालय खोला। सन् 1882 ई० में अपना मुख्य कार्यालय अमेरिका से मद्रास के निकट अड्यार नामक स्थान पर परिवर्तित कर दिया। सन् 1907 ई० में कर्नल अल्काट की मृत्यु के पश्चात श्रीमती एनी बेसेंट सोसायटी की अध्यक्ष चुनीं गई। एनी बेसेंट के अध्यक्ष बनने के पश्चात सोसायटी की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई। श्रीमती एनी बेसेंट ने बनारस में हिन्दू स्कूल की स्थापना की। इस स्कूल में धर्म एवं पाश्चात्य वैज्ञानिक विषयों पर शिक्षा दी जाती थी। सन् 1915-16 मेंं मदनमोहन मालवीय जी के द्वारा बनारस हिन्दू स्कूल को बनारस हिन्दू महाविद्यालय में परिवर्तित कर दिया गया। थियोसोफिकल सोसायटी के अनुयायी ईश्वरीय ज्ञान को आत्मिक हर्षोन्माद एवं अंतर्दृष्टि द्वारा प्राप्त करने की कोशिश करते थे। उनका यह विश्वास था कि योग, ध्यान एवं चिंतन जैसे कार्यकलापों द्वारा आत्मा को परमात्मा से जोड़ा जा सकता है। वे हिन्दू धर्म के कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धांत पर विश्वास करते थे। सोसायटी का उद्येश्य सभी प्रकार के भेदभावों को त्यागकर सर्व कल्याण का प्रयत्न करना था।
उद्येश्य:-
- विविध धर्म, दर्शन तथा विज्ञान के अध्ययन को प्रोत्साहित करना। इसने प्राचीन धर्मों के पुनर्रुत्थान पर बल दिया।
- मानव जाति को सार्वभौमिक महत्व। विश्व बंधुत्व का एक केंद्र बिंदु जाति, धर्म, वर्ण अथवा रंग के भेदभावों को न मानते हुए बनाना।
- कर्म सिद्धांत और पुनर्जन्म को स्वीकार करना।
- आत्मोन्नति का मार्ग और भविष्य।
इस आंदोलन के द्वारा हिन्दू धर्म को अपनी प्राचीन विरासत से अवगत कराया गया परंतु अपने अर्थपूर्ण उद्येश्यों एवं सराहनीय प्रयत्नों के पश्चात भी थियोसोफिकल सोसायटी कोई ऐसे आंदोलन को जन्म न दे सकी जिससे हिन्दू धर्म पर दूरगामी प्रभाव पड़ते। धार्मिक परिवर्तनवादी के रुप में भी सोसायटी में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी। लेकिन हिन्दू धर्म की समृद्ध विरासत से लोगों के मन में राष्ट्रवाद की प्रेरणा अवश्य जागृत कर दी।
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