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चेरो विद्रोह
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यह विद्रोह स्थानीय राजाओं एवं अंग्रेज कम्पनी दोनों के विरुद्ध था जोकि बिहार में सन् 1800 ई० मेंं बिहार के जमींदार वर्ग चेरो जनजाति के लोगों की जमीनें छीनने के विरुद्ध था। इस आंदोलन का नेतृत्व भूषण सिंह नामक जमींदार ने किया।
फराजी आंदोलन का मुख्य उद्येश्य इस्लाम धर्म में सुधार करना था। इसे 'फराइदी आंदोलन' के नाम से भी जाना जाता था जिसकी शुरुआत पूर्वी बंगाल में 'हाजी शरियतुल्लाह' के द्वारा की गई थी। हाजी शरियतुल्लाह का मुख्य उद्येश्य इस्लाम धर्म के लोगों को सामाजिक भेदभाव एवं शोषण से बचाना था। परंतु शरियतुल्लाह की मृत्यु के पश्चात सन् 1840 ई० में इस आंदोलन का नेतृत्व उनके पुत्र दूदू मियाँ के द्वारा संभालने पर इस आंदोलन ने क्रांतिकारी रूप अख्तियार कर लिया। दूदू मिंया ने गांव से लेकर प्रांतीय स्तर तक प्रत्येक स्तर पर एक प्रमुख नियुक्त किया। इस आंदोलन में ऐसे क्रांतिकारियों का दल तैयार किया गया जिन्होंने हिन्दू जमींदारों एवं अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष किया। दूदू मियां को पुलिस के द्वारा कई बार गिरफ्तार किया गया तथा इन्हें सन् 1847 ई० में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया जिससे आंदोलन नेतृत्वहीन हो गया।सन् 1862 ई० दूदू मिंया की मृत्यु के पश्चात आंदोलन मंद पड़ गया।
अर्जुन बांध एक मिट्टी का बना हुआ बांध है, जो 27 मीटर ऊंचा और 5200 मीटर लंबा है, यह बांध उत्तर प्रदेश के चोहरारी में स्थित है, जो महोबा से लगभग 20 किमी दूर धसान नदी को जोड़ता है। यह बांध वर्ष 1957 में अर्जुन नदी पर बनाया गया था। इस बांध की सहायता से लगभग 217 किमी क्षेत्रफल सिंचित है। सिंचाई के लिए यहां 42 किमी लम्बी मुख्य नहर बनायी गयी है। इस 27 मीटर ऊंचे बांध को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पांच साल का समय लगा लिया। मंगल गढ़ किला और गोवर्धन मंदिर यहां से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सीए कानपुर हवाई अड्डा यहां से निकटतम हवाई अड्डा है।
भारत एक विशाल छेत्रफल पर फैला हुआ भिन्न-भिन्न जलवायु एवं मृदाओं वाला देश है। इसलिए भारत में उष्णकटिबंधीय प्रकार से लेकर टुंड्रा प्रकार जैसी विविध वनस्पतियां पाई जाती है।जोकि पर्यावरण एवं आर्थिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण हैं। भारत में पायी जाने वाली वनस्पतियों को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नवत हैं:- 1. उष्णकटिबंधीय सदाहरित वन- ऐसे वन 200 सेमी. से अधिक वर्षा वाले छेत्रों में पाए जाते हैं। इस प्राकार के वनों की लकड़ियां विषुवतिय वनों की तरह कठोर होती हैं एवं इनकी ऊंचाई 60 मीटर से अधिक होती है। इनमें मुख्यत: महोगनी, आबनूस, जारूल, बांस बेंत,सिनकोना एवं रबर जैसे बहुउपयोगी वृक्ष पाये जाते हैं। पश्चिमी घाट के ऊत्तरी छेत्रों में इन वनों को 'शोलास वन ' के नाम से जाना जाता है।भारत में यह वन पश्चिमी घाट, शिलांग का पठार, लक्ष्यद्वीप एवं अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं। अंडमान व निकोबार द्वीप समूह का 95% भाग इस प्रकार के वनों से ढका है। 2. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन- ये वन 100 से 200 सेमी. वर्षा वाले छेत्रों में पाए जाते हैं। सांगवान, सखु...
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