संन्यासी विद्रोह

संन्यासी विद्रोह की शुरुआत 1770 में उत्तरी बंगाल से हुई थी। 1757 के प्लासी के युद्ध एवं उसके पश्चात 1764 के बक्सर के युद्ध के पश्चात बंगाल पर ब्रिटिश शासन की पकड़ मजबूत हो गई थी जिसके फलस्वरूप बंगाल के भूमिहीन किसानों व दस्तकारों का शोषण किया जाने लगा । साथ ही साथ तीर्थ यात्रियों के तीर्थ स्थलों पर यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया जोकि इस आंदोलन का प्रमुख कारण बना।संन्यासी लोग हिन्दू नागा तथा गिरी के सशस्त्र संन्यासी थे जो पूर्व में सेनाओं में सैनिक थे। संन्यासियों ने अंग्रेजों से बलपूर्वक धन वसूला तथा अंग्रेजी फैक्टरियों पर लूटपाट की इस कार्य में किसानों व दस्तकारों ने संन्यासियों का पूरा साथ दिया। इस आंदोलन में हिन्दू मुस्लिम एकता नजर आई। मंजर शाह,भवानी पाठक,मूसा शाह व देवी चौधरानी आदि प्रमुख आंदोलनकारी थे।यह आंदोलन मुख्य रूप से 1770 ई० में शुरू होकर 1800 ई० तक चला परंतु पूर्णतया 1820 में जाकर समाप्त हुआ।आदोलन के विरूद्ध अंग्रेजों ने दमन की नीति का सहारा लिया। संन्यासी विद्रोह का विस्तृत वर्णन श्री बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा 'आनन्द मठ' नामक् पुस्तक में दिया गया है। 'आनन्द मठ' को क्रांतिकारियों की बाईबिल कहा जाता है। हमारा राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' भी इसी पुस्तक से लिया गया है।

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