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जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खेड़ा सत्याग्रह (गुजरात) 1918

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गुजरात के खेड़ा जिले में सन् 1918 में भीषण दुर्भिक्ष के कारण किसानों की फसलें बर्बाद हो गयीं परंतु फिर भी ब्रिटिश सरकार ने किसानों से भू-राजस्व वसूलना जारी रखा। 'भू-राजस्व संहिता' के अनुसार, यदि किसान की फसल का उत्पादन, कुल उत्पादन के एक-चौथाई से कम होता है तो उसका भू-राजस्व पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जाएगा। किसानों को गांधी जी का समर्थन प्राप्त हुआ किसानों ने लगान देने से इन्कार कर दिया। खेड़ा जिले के युवा अधिवक्ता वल्लभभाई पटेल, इन्दुलाल याज्ञनिक तथा मोहनलाल पांडेय, अनुसूइया साराभाई आदि नेताओं ने गांधी जी का आंदोलन में साथ दिया। इन्होंने किसानों को लगान न अदा करने की शपथ दिलाई। li>ब्रिटिश सरकार ने लगान के लिए दमन का सहारा लिया। अनेक स्थानों पर किसानों की संपत्ति कुर्क की गई तथा मवेशियों को जब्त किया गया। गांधी जी और वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में किसानों ने अहिंसक आंदोलन जारी रखा। गांधी जी ने घोषणा की यदि सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दे तो लगान देने में सक्षम किसान स्वेच्छा से अपना लगान अदा कर देंगे। अंत में सरकार ने अांदोलन का विशाल रूप देखकर अ...

अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन- गांधी जी की प्रथम भूख हड़ताल

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अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन की शुरुआत मिल मालिकों द्वारा बढे हुए प्लेग भत्ते को वापस लेने के विरोध में हुआ। सन् 1917 में अहमदाबाद में प्लेग की बीमारी फैलने के कारण मिल कर्मचारियों को प्लेग बोनस दिया जाता था। सन् 1918 में मिल मालिकों ने बोनस समाप्त करने की घोषणा कर दी। जिसका मिल मजदूरों ने विरोध किया। गांधी जी ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए मिल मजदूरों को शांतिपूर्वक, अहिंसात्मक हड़ताल पर चले जाने एवं 35% बोनस की मांग करने को कहा परन्तु मजदूर 50% भत्ते की मांग कर रहे थे। गांधी जी ने मजदूरों के समर्थन में भूख हड़ताल करने का फैसला किया। हड़ताल को देखते हुए मिल मालिक 20% भत्ता देने को राजी हो गए। गांधी जी के समर्थन से मजदूरों में उत्साह बढ गया और आंदोलन अधिक सक्रिय हो गया। इस आंदोलन में अंबालाल साराभाई की बहन अनुसूइया बेन ने गांधी जी का साथ दिया और एक दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया। मजबूर होकर मिल मालिक मजदूरों से समझौता करने के लिए तैयार हो गए। सारा मामला एक ट्रिब्यूनल को सौंप दिया गया । ट्रिब्यूनल ने सारे मामले को देखते हुए हुए मजदूरों को 35% भत्ता देने की घोषणा कर द...

चम्पारण आंदोलन- गांधी जी का प्रथम सत्याग्रह (Champaran Satyagraha)

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चंपारण आंदोलन गांधी जी का भारत में प्रथम आंदोलन था।यह आंदोलन बिहार के चंपारण जिले में अंग्रेज जमींदारों द्वारा किसानों की जमीन का 3/20 भाग नील की खेती के लिए आरक्षित रखने के खिलाफ सन् 1917 में हुआ। यह व्यवस्था ' तिनकठिया प्रथा ' कहलाती थी।19 वीं सदी के आरंभ में अंग्रेज बागान मालिकों ने बिहार के किसानों से अनुबंध के तहत नील की खेती के लिए बाध्य किया। यूरोप में कैमिकल द्वारा तैयार कृत्रिम नील आ जाने से भारतीय नील सस्ता हो गया जिससे भारतीय किसानों की आय बहुत कम हो गयी और जमींदारों का कर्ज उनपर बढता गया। बिहार के किसान नेता राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को चंपारण आकर तिनकठिया प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आमंत्रित किया। फलत: गांधी जी , राजेंद्र प्रसाद,ब्रज किशोर, मजहर-उल-हक, महादेव देसाई, नरहरि पारिख, जे० बी० कृपलानी एवं अनुग्रह नारायण सिंह आदि के सहयोग से चंपारण में किसानों की समस्याओं को देखने पहुंचे। गांधी जी को बिहार प्रशासन ने चंपारण से वापस चले जाने का आदेश दे दिया। गांधी जी ने इस आदेश को अस्वीकार करते हुए किसी भी दंड को भुगतने के लिए तैयार हो गये तथा उन्होंने अहिंसात...

महात्मा गांधी जी - परिचय, अफ्रीका प्रवास एवं भारत आगमन

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परिचय              गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के काठियावाड़ में पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता कर्मचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे। माता पुतलीबाई एक धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। गांधी जी का विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा गांधी के साथ हुआ था। सन् 1887 ई० में इन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की इसके पश्चात भावनगर के रामदास कालेज से डिग्री प्राप्त की उसके पश्चात बेरिस्टर की डिग्री करने लंदन चले गए वहां से लौटने पर वकालत शुरू की। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या कर दी गई। अफ्रीका प्रवास               सन् 1894 में गांधी जी गुजरात के व्यापारी दादा अब्दुल्ला का केस लड़ने अफ्रीका चले गए। वहां उन्होंने गोरों के द्वारा कालों एवं भारतीयों के शोषण के विरुद्ध संघर्ष किया। उन्होंने 'सत्याग्रह' का सहारा लेकर अपनी निम्न मांगें मनवाई : गांधी जी ने अफ्रीका में भारतीयों को संगठित करने के लिए 'नटाल भारतीय कांग्रेस' की स्थापना की तथा ' इंडियन ओपिनियन' नामक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया। उ...

स्वामी विवेकानन्द जी- परिचय एवं विचारधारा

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स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक कायस्थ परिवार में  हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था । उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील थे जोकि पश्चिमी सभ्यता से काफी प्रभावित हुए। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचार रखतीं थी वो भगवान शिव की पूजा करतीं थीं परिवार के संस्कार और धार्मिक विचारों को देखकर विवेकानंद जी बचपन से ही जिज्ञासु थे वे भगवान के बारे में जानने के इच्छुक थे। स्वामी जी ने ईश्वर के बारे में जानने के लिए ब्रह्म समाज की सदस्यता ग्रहण की परंतु वहां इन्हें संतोषजनक ज्ञान प्राप्त न होने के कारण रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु मान लिया और उन्हीं से आध्यात्म की शिक्षा प्राप्त की। रामकृष्ण परमहंस केवल अद्वैत दर्शन के प्रर्वतक थे।      स्वामी जी ने वर्ष 1893 में शिकागो ( यू०एस०ए०) में आयोजित ' विश्व धर्म सम्मेलन ' में हिस्सा लिया। स्वामी विवेकानंद जी ने हिन्दू धर्म के बारे में पूरी दुनिया के प्रतिनिधियों को जानकारी दी। वह ' नव हिन्दूवाद ' के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे। इन्होंने वर्ष 1897 में बेलूर ( कलकत्ता ) में रामकृष्ण मि...

होमरूल लीग आंदोलन

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        होमरूल लीग आंदोलन की शुरुआत आयरलैंड के होमरूल आंदोलन के तर्ज पर हुई। इसके अगुआ एनी बेसेंट एवं बालगंगाधर तिलक थे जिन्होंने क्रमशः मद्रास एवं महाराष्ट्र में इसकी शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश उपनिवेश को स्वीकार करते हुए स्वराज प्राप्ति के लक्ष्य को प्राप्त करना था जिसके तहत अहिंसा का प्रयोग किए बिना ब्रिटिश सरकार से भारतीय उपनिवेश को स्वशासन देने के प्रयास किए गए। भारतीयों को राजनीति की शिक्षा प्रदान करके ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया गया। प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजो द्वारा भारतीय संसाधनों का खुले रूप से प्रयोग किया गया तथा छतीपूर्ति के लिए भारतीयों पर भारी कर आरोपित किया गया जिसके विरोधस्वरूप भारतीयों ने इस लीग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भागीदारी की। आंदोलन काफी सक्रिय रहा क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध से ब्रिटेन के अजेय होने का भ्रम टूट गया था साथ ही सन् 1914 में बालगंगाधर तिलक के जेल से रिहा होने पर इस आंदोलन को महाराष्ट्र में संगठनात्मक ढांचा तैयार हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रारंभ में इस आंदोलन को समर्थन नहीं दिया परंतु...

कांग्रेस का सूरत विभाजन (1907) Surat Split

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  1907 के कांग्रेस के सूरत विभाजन का कारण पार्टी में दो विचारधाराओं का जन्म लेना था जिसकी शुरुआत 1905 के बनारस अधिवेशन में ही हो गई थी जब गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में अधिवेशन हुआ तो बाल गंगाधर तिलक ने उदारवादियों की याचिका एवं याचना की नीति का कड़ा विरोध किया। उनका मत था कि स्वदेशी आंदोलन का विस्तार पूरे देश में किया जाए तथा सभी वर्गों को सम्मिलित करके राष्ट्रव्यापी आन्दोलन की शुरुआत की जाए परन्तु उदारवादी इसे बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे और वो अन्य पक्षों को इसमें शामिल करने के पक्षधर नहीं थे। उग्रवादी चाहते थे कि उनके प्रस्तावों को सर्वसम्मति से मान लिया जाए परन्तु उदारवादी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने पर तुले थे। इसका मध्य मार्ग निकालते हुए स्वदेशी आंदोलन के समर्थन को कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया जिससे विभाजन कुछ समय तक टल गया।        दिसंबर 1906 में अध्यक्ष पद को लेकर कलकत्ता अधिवेशन में एकबार फिर मतभेद उभरकर सामने आया। उग्रवादी नेता, बालगंगाधर तिलक या लाला लाजपत राय में से किसी एक को अध्यक्ष बनाना चाहते थे जबकि नरमपंथी डा० रास बिहारी घोष के...